Saturday, February 26, 2011

विधायको का दुष्कर्म---------------सौरभ दुबे


आज कल बलात्कार जैसे आम बात हो गई हें ,आये दिन न्यूज़ पेपर में हमे ऐसी न्यूज़ देखने को मिल जाती हें ,अभी आज ही  मैंने पढ़ा हें कि एनसीपी विधायक दिलीप वाघ पर बीस साल कि लड़की को नौकरी का झासा देकर दुष्कर्म किया  ,जानकारी के मुताबिक विधायक और उनके पिए महेश माली ने नासिक के एक गेस्ट हाउस में नौकरी दिलाने के नाम पर लड़की को बुलाया और उसके साथ दुष्कर्म कीया,पुलिस ने जाँच शुरू कर दिया हें विधायक अभी फरार हें ,यहा कि कानून व्यवस्था इतनी कमजोर क्यों हें कि कोई किसी के साथ बलत्कार करने कि हिम्मत करे ,मै तो चाहता हू कि बलत्कार की सजा सात साल नही बल्कि  फाँसी होनी चाहिए जिससे किसी को भी बलत्कार करने की जल्दी हिम्मत नही पड़ेगी हम रोज न्यूज़ पेपर में देखते हें कि कही ना कही बलत्कार रोज हो रहा हें आखिर ये कब तक चलेगा नबालीगो के साथ दलितों के साथ कब तक चलेगा ये अब  तो सरकार को जागना ही चाहिए और कोई कड़ा कदम उठाना ही चाहिए, अभी मैंने देखा लखनऊ में किशोरी लड़की के साथ जबरदस्ती बलत्कार कीया ,किसी भी लड़की की जीवन ये समाज के हैवान दो पल में तबाह कर देते हें ,इनके अन्दर इंसानियत नाम की कोई चीज तो हें ही नही ,अब इस विधायक को ही देख लिजिये जब हमने इन्हें विधायक नही चुना था तब ये कहते थे ,माता जी ,बहन जी ,दादी जी ,भइया ,चचा  आदि, की फला-फला चुनाव चिन्ह पर ही मुहर लगाइए और हमे सेवा करने का मौका दीजिये, आज जब हम ने इनको चून  दीया तो आज ये सब आदर देना भूल गए साथ में यह भी भूल गये की    जिस जनता ने आज हमको यहा तक पहुचाया हें और उसी जनता के बहू बेटियों के साथ दुष्कर्म कर रहे हें ,अगर आपको नौकरी नही दिलानी थी तो साफ मना कर दीया होता ,क्या  बलत्कार करने के बाद ही नौकरी देंगे नौकरी तो दीया नही किसी को बदनाम जरुर कर दीया इन हैवानो को समाज में जीने का कोई अधिकार नहीं है खुद की बहू बेटियों को घर में छुपा के रखेंगे और दूसरो के बहू बेटियों के साथ दुष्कर्म करेंगे,   बस मै सरकार से इतना अपील करना चाहता हू की इन समाज के हैवानो को सरकार कड़ी से कड़ी सजा दे और दूबारा इन्हें कभी भी मंत्रिमंडल मै ना बैठने दे ,
                                                                                                   सौरभ दुबे

Wednesday, February 16, 2011

क्यों लिखता हूँ मैं ------------ सौरभ दुबे


हा कुछ लोगो ने मुझसे पूछा भईया आप ब्लॉगिंग मे क्यूं  आये , अभी तो आप बहूत छोटे हैं,और आपको समाज के बारे मे क्या मालूम होगा।तो मैने उन से कहा भईया अपनी बात कहने या एक दुसरे तक पहूचाने के लिये किसी समाजिक ज्ञान कि जरूरत नही होती।मैने तो यही सुना  और पढा हैं कि चार लोगो के मिलने से एक समाज बनता हैं।और यहा पर यह ब्लॉग एक समाजिक नेटवर्क हैं।हा एक बात और समाज मे हम बोल कर अपनी शब्दों को व्यक्त  करते हैं,और  ब्लॉग पर मौन रहकर यानी लिखकर अपने शब्दों को व्यक्त  करते हैं।दोनो ही एक समाज की तरह काम करते हैं।इसीलिये मैने अपने ब्लॉग का नाम कुछ बाते कलम से रखा हैं।इस ब्लॉग के माध्यम से मैं समाज मे होने वाले अच्छी तथा बूरी और युवाओ के लिये प्रेरणात्मक पोस्ट करुंगा ।मुझे देश और संस्कृति से लगाव हैं।अपनी  संस्कृति और  सभ्यता को देखकर मेरा मन व्याकुल हो उठता हैं।मै गरिबी और अमीरी के बीच जो असमानता फासला हैं।उस को कम करना चाहता  हूँ।और भी बहूत कुछ सोचता हूँ  देश के बारे मे, पक्षधर हूँ समान शिक्षा का,देश के विकाश कहे जाने वाले किसानो के उपर लगे हुये,गरिबी के ठप्पे को मिटाना चाहता हूँ।

सबको अपनी बात कहने का समान अधिकार होता है,वैसे कविर दास ने कहा है
                                ऐसी बानी बोलिये , मन का आपा खोय ।
                                औरन को सीतल करै , आपहुं सीतल होय ॥
और भी एक वाक्य किसी ने कहा था
                                    ‘बातहिं हाथी पाइए, बातहिं हाथी पांव’।

उपर वाले दोहे का अर्थ आसा है कि आप जानते होंगे,और दुसरे वाले  वाक्य का  अर्थ मै बता देता हु,कहने का मतलब यह है कि कुछ लोग बोलने से पहले कुछ सोचते नही बस बोल देते हैं।प्राचीन काल मे कुछ राजा बस वाणी से खूश होकर हाथी दे देते थे।खैर अब तो न राजा रहे और न ही हाथियों के माध्यम से पुरस्कार या सजा देने का चलन।पर आपके बोलने की कला का आज भी आपके जीवन पर लगभग उतना ही प्रभाव पड़ता है।इसलिये जो कुछ भी बोले सोच समझकर बोले।

                                                    शब्द सम्हार बोलिये, शब्द के हाथ न पाँव ।
                                                    एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव ॥
मेरे कहने का मतलब यह है कि सत्य बोलो,प्रिय बोलो,अप्रिय सत्य मत बोलो।अर्थात कुछ लोग सत्य बोलते है।लेकिन वो एसा सत्य बोलते है कि सामने वाले को बुरा लग जाये।सत्य तो सत्य है ही उसे डाइरेक्ट नही,इनडाइरेक्ट मे बोलना चाहिये।आज के समाज की सोच यह है कि हमें सिर्फ लाभ होना चाहिए चाहे उसके बदले नैतिकता ही क्यों ना दाव पर हो,मै आज के इस समाज के सोच को बदलने के लिये एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ।जिसके लिये मुझे आप सब की सहयोग चाहिये।और एक छोटा सा प्रयास हिन्दी भाषा के लिये हमारा प्रयास हिन्दी का विकास आईये हमारे साथ।
जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

             अगर आप मुझसे बात करना चाहें तो मेरा नम्बर है- 09312705299 ।
                                                                                                                      सौरभ दुबे
          
             





Monday, February 7, 2011

मन के हारे हार हे,मन के जिते जित


                                        वैसे तो यह दोहा कविर दास ने लिखा था ,कि
                  “मन के हारे हार हे मन के जिते जित ,कहे कविर गुरु पाईये मन हि के परपित"  
मै यह कहना चाहता हु कि आज कि युवा पिढी  जिवन मे कुछ भि खोना नहि चाहति,वो बस पाना चाहता है,अगर वो कुछ खोता है तो वो उसे दुबारा पाने कि कोशीस नहि करति,ओर वो दुसरे रास्तो पर भटक जाते है,
मै अपने बारे मे बताता हु मै डियु के एक कालेज मे पढता हु ,कुछ दिनो पहले यहि मेरि भी सोच थी,ओर मै भी यहि सोच रहा था कि मेरा कैरियर बरबाद हो गया ओर मै कमरे मे अपने आपको रखने लगा,बात कुछ एसि थि कि ,एक बार मै फेल हो गया था ओर दुसरे साल जब मैने दुबारा एडमिशन करवाया तो उसके कुछ महिने बाद हि मेरा  एक्सीडेंट हो गया,एक बार फिर मेरा पढाई खराब हो गई,मैने सोचा कि मेरा जिवन बरबाद हो गया,उन दो सालो कि तुलना मैने अपने पुरे जिवन से कर दीया,इससे पहले मैने अपने जिवन मे कुछ खोया नहि था, अब मेरे अन्दर हिन भावना आने लगि ओर मै खुद को बहुत कमजोर सोचने लगा,ओर अपनी तुलना दुसरे से करने लगा,उस समय मै यह सोच रहा था कि कब मै काबिल इन्सान बनुंगा ओर सफलता कब पाउंगा धिरे-धिरे मै अब अपने दुखो को भुलकर अपनी लाईफ मे वापस आ गया हु,उस समय मै किसि भि काम करने कि क्षमता मेरे अन्दर नहि थि,पहले मै किसि भि काम को चाहे कर पाऊ या न कर पाऊ मै बोलता था कि मै इसे कर लुंगा,लेकिन अब मेरे अन्दर यह क्षमता आ गई हैं,अब मै बोल सकता हु कि मै यह काम कर लुंगा,अब मै कर रहा हु पुरे जोश के साथ,मैने यह प्रेरणा कुछ महान हस्तियों  के जिवन से पाया,मै आपको इन महान हस्तियों  के बारे मे बताता  हु,
अब्राहम लिंकन -------------
       इनका जन्म १२ फरवरि १८०९ मे हुआ था,ये १८१६ सन मे इनडियना चले गये ओर अपना जवानि वहि गुजारि,जब ये ९ साल के थे तो तभि इनके माँ का देहान्त हो गया था,यह अपनी सोतेलि माँ के यह बहुत खुश थे जो इनको पढाति थि,ये बहुत गरिब थे,एक बार इनहोने अपने मिञ से किताब मांगा था,ओर वो किताब ओस मे भिग गया तो उनके मिञ ने उनसे उस किताब कि दाम मांगा,उनके पास पैसे नहि थे देने के लिये तब उन्होंने उसके खेत मे काम करके उस किताब का दाम अदा किया,वह किताबो से प्यार करते थे,लेकिन उसके पास पढने के लिये किताब नहि था,उनकि माँ उनको कोयले कि राख से पढाति थि,आपने २१ साल कि उमर मे बिजनेस ओर २२ साल मे चुनाव हार गये,आपने अपना बिजनेस फिर सुरु किया ओर २४ साल मे एक बार फिर से  बिजनेस मे माँत खा गये,इसके एक साल बाद हि इनकि पत्नी का देहान्त हो गया ओर इनका माँनसिक संतुलन कुछ हिल गया,३४ साल मे आपने कांग्रेस के चुनाव ओर ४५ साल मे सिनेट के चुनाव मे हार देखनि पणि, 47वें साल में वह उपराष्ट्रपति बनते-बनते रह गये,५२ साल कि उमर मे अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गये,अगर ये अपनी असफलताओंये देखकर पिछे मुण जाते या ये अपनी किस्मत समझकर हार माँन लेते,अगर ये चाहते तो अपनी वकालत फिर से सुरु कर सकते थे पर आपने एसा कुछ नहि किया ओर लडते रहे हार तो केवल सफर का भटकाव है, अंत नहि, ऐसे हि बहुत से लोगो ने ज़िंदगी मे  सफर  तय किया है,
जैसे लाल बहादुर शास्त्री इनको हि देख लिजिये ये पढने के लिये नदि पार करके स्कूल जाते थे ,इनके पास नाव से जाने के लिये पैसे नहि होते थे,आपने भि काफि संघर्ष  किया ओर एक दिन ये भारत के प्रधानमंत्री बने
थामस एडिसन को कौन नहि जानता इनहोने बिजलि का आविष्कार किया था,ये बस तिन महिने स्कूल गये थे,इनहोने दस हजार बलबो का आविष्कार किया सब मे इनको असफलताओं मिलि,लेकिन ये हार नहि माँने ओर ये अपने पथ पर लगे रहे आखिर इनहोने एक दिन सफलता पा हि लिया,उन्होंने अपने बरबाद हुये समय को बहुत किमति कहा ओर कहा हमाँरि सारि गलतिया जल के राख हो गई।
ओर बिजलि के आविष्कार के बाद इनहोने तिन हि हपतो के बाद हि फोनोग्राफ का आविष्कार कर दिया
इसि तरह बिथेवोन को युवासथा मे कहा गया था कि उनमे संगीत देने कि प्रतिभा  नहि है,लेकिन उन्होंने संगीत कि कुछ उत्तम  रचना दिया
एसे हि अगर हम इतिहास को  पढते है तो हमे ये पता चलता है कि हर सफलता कि भुमिका असफलताओं से सुरु हुई है,इतनि असफलताओं के बाद भि उन्होंने अपने  लगन को नहि छोडा ,ओर सफलता को पा हि लिया
हममे से कुछ लोगो अपने जिवन मे अपनी असफलताओं पर एक बार या दो बार कोशिस करते है,ओर बोलते है कि हमने पुरि कोशिस कर लिया लेकिन कुछ हासिल नहि हुआ,एक बात बताना चाहता हु कि असफलताओं हमे पिछे नहि,आगे बढाति है,असफलताओं हमे सिख देति है,ओर  अपनी असफलताओं से सिखते हुये आगे बढते हैं,अगर हम सब कामयाबि चाहते है तो हमे अपनी असफलताओं से सिख लेनि पडेगि,
हममे ओर उनमे फर्क सिर्फ़ इतना है कि वो अपनी असफलताओं के बाद जोश, हिम्मत के साथ उठ खड़े हुये ओर हम वो जोश ला नहि पाते,
                    ” नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा है कि”
                                ”संसार मे कुछ भि असम्भव नहि है
   अगर इन्सान लक्ष्य बना ले कि मुझे वो पाना है,चाहे जितना भि तुफान आये उसे विचलित नहि होना चाहिये
जैसे अर्जुन का लक्ष्य था चिड़िया कि आख मे तिर माँरना,तो उनहे केवल चिड़िया का आख दिखाई दे रहा था,उसि तरह हमे भि अपने लक्ष्य पर फोकस करना चाहिये।
                                                                                                                            सौरभ दुबे