Monday, February 7, 2011

मन के हारे हार हे,मन के जिते जित


                                        वैसे तो यह दोहा कविर दास ने लिखा था ,कि
                  “मन के हारे हार हे मन के जिते जित ,कहे कविर गुरु पाईये मन हि के परपित"  
मै यह कहना चाहता हु कि आज कि युवा पिढी  जिवन मे कुछ भि खोना नहि चाहति,वो बस पाना चाहता है,अगर वो कुछ खोता है तो वो उसे दुबारा पाने कि कोशीस नहि करति,ओर वो दुसरे रास्तो पर भटक जाते है,
मै अपने बारे मे बताता हु मै डियु के एक कालेज मे पढता हु ,कुछ दिनो पहले यहि मेरि भी सोच थी,ओर मै भी यहि सोच रहा था कि मेरा कैरियर बरबाद हो गया ओर मै कमरे मे अपने आपको रखने लगा,बात कुछ एसि थि कि ,एक बार मै फेल हो गया था ओर दुसरे साल जब मैने दुबारा एडमिशन करवाया तो उसके कुछ महिने बाद हि मेरा  एक्सीडेंट हो गया,एक बार फिर मेरा पढाई खराब हो गई,मैने सोचा कि मेरा जिवन बरबाद हो गया,उन दो सालो कि तुलना मैने अपने पुरे जिवन से कर दीया,इससे पहले मैने अपने जिवन मे कुछ खोया नहि था, अब मेरे अन्दर हिन भावना आने लगि ओर मै खुद को बहुत कमजोर सोचने लगा,ओर अपनी तुलना दुसरे से करने लगा,उस समय मै यह सोच रहा था कि कब मै काबिल इन्सान बनुंगा ओर सफलता कब पाउंगा धिरे-धिरे मै अब अपने दुखो को भुलकर अपनी लाईफ मे वापस आ गया हु,उस समय मै किसि भि काम करने कि क्षमता मेरे अन्दर नहि थि,पहले मै किसि भि काम को चाहे कर पाऊ या न कर पाऊ मै बोलता था कि मै इसे कर लुंगा,लेकिन अब मेरे अन्दर यह क्षमता आ गई हैं,अब मै बोल सकता हु कि मै यह काम कर लुंगा,अब मै कर रहा हु पुरे जोश के साथ,मैने यह प्रेरणा कुछ महान हस्तियों  के जिवन से पाया,मै आपको इन महान हस्तियों  के बारे मे बताता  हु,
अब्राहम लिंकन -------------
       इनका जन्म १२ फरवरि १८०९ मे हुआ था,ये १८१६ सन मे इनडियना चले गये ओर अपना जवानि वहि गुजारि,जब ये ९ साल के थे तो तभि इनके माँ का देहान्त हो गया था,यह अपनी सोतेलि माँ के यह बहुत खुश थे जो इनको पढाति थि,ये बहुत गरिब थे,एक बार इनहोने अपने मिञ से किताब मांगा था,ओर वो किताब ओस मे भिग गया तो उनके मिञ ने उनसे उस किताब कि दाम मांगा,उनके पास पैसे नहि थे देने के लिये तब उन्होंने उसके खेत मे काम करके उस किताब का दाम अदा किया,वह किताबो से प्यार करते थे,लेकिन उसके पास पढने के लिये किताब नहि था,उनकि माँ उनको कोयले कि राख से पढाति थि,आपने २१ साल कि उमर मे बिजनेस ओर २२ साल मे चुनाव हार गये,आपने अपना बिजनेस फिर सुरु किया ओर २४ साल मे एक बार फिर से  बिजनेस मे माँत खा गये,इसके एक साल बाद हि इनकि पत्नी का देहान्त हो गया ओर इनका माँनसिक संतुलन कुछ हिल गया,३४ साल मे आपने कांग्रेस के चुनाव ओर ४५ साल मे सिनेट के चुनाव मे हार देखनि पणि, 47वें साल में वह उपराष्ट्रपति बनते-बनते रह गये,५२ साल कि उमर मे अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गये,अगर ये अपनी असफलताओंये देखकर पिछे मुण जाते या ये अपनी किस्मत समझकर हार माँन लेते,अगर ये चाहते तो अपनी वकालत फिर से सुरु कर सकते थे पर आपने एसा कुछ नहि किया ओर लडते रहे हार तो केवल सफर का भटकाव है, अंत नहि, ऐसे हि बहुत से लोगो ने ज़िंदगी मे  सफर  तय किया है,
जैसे लाल बहादुर शास्त्री इनको हि देख लिजिये ये पढने के लिये नदि पार करके स्कूल जाते थे ,इनके पास नाव से जाने के लिये पैसे नहि होते थे,आपने भि काफि संघर्ष  किया ओर एक दिन ये भारत के प्रधानमंत्री बने
थामस एडिसन को कौन नहि जानता इनहोने बिजलि का आविष्कार किया था,ये बस तिन महिने स्कूल गये थे,इनहोने दस हजार बलबो का आविष्कार किया सब मे इनको असफलताओं मिलि,लेकिन ये हार नहि माँने ओर ये अपने पथ पर लगे रहे आखिर इनहोने एक दिन सफलता पा हि लिया,उन्होंने अपने बरबाद हुये समय को बहुत किमति कहा ओर कहा हमाँरि सारि गलतिया जल के राख हो गई।
ओर बिजलि के आविष्कार के बाद इनहोने तिन हि हपतो के बाद हि फोनोग्राफ का आविष्कार कर दिया
इसि तरह बिथेवोन को युवासथा मे कहा गया था कि उनमे संगीत देने कि प्रतिभा  नहि है,लेकिन उन्होंने संगीत कि कुछ उत्तम  रचना दिया
एसे हि अगर हम इतिहास को  पढते है तो हमे ये पता चलता है कि हर सफलता कि भुमिका असफलताओं से सुरु हुई है,इतनि असफलताओं के बाद भि उन्होंने अपने  लगन को नहि छोडा ,ओर सफलता को पा हि लिया
हममे से कुछ लोगो अपने जिवन मे अपनी असफलताओं पर एक बार या दो बार कोशिस करते है,ओर बोलते है कि हमने पुरि कोशिस कर लिया लेकिन कुछ हासिल नहि हुआ,एक बात बताना चाहता हु कि असफलताओं हमे पिछे नहि,आगे बढाति है,असफलताओं हमे सिख देति है,ओर  अपनी असफलताओं से सिखते हुये आगे बढते हैं,अगर हम सब कामयाबि चाहते है तो हमे अपनी असफलताओं से सिख लेनि पडेगि,
हममे ओर उनमे फर्क सिर्फ़ इतना है कि वो अपनी असफलताओं के बाद जोश, हिम्मत के साथ उठ खड़े हुये ओर हम वो जोश ला नहि पाते,
                    ” नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा है कि”
                                ”संसार मे कुछ भि असम्भव नहि है
   अगर इन्सान लक्ष्य बना ले कि मुझे वो पाना है,चाहे जितना भि तुफान आये उसे विचलित नहि होना चाहिये
जैसे अर्जुन का लक्ष्य था चिड़िया कि आख मे तिर माँरना,तो उनहे केवल चिड़िया का आख दिखाई दे रहा था,उसि तरह हमे भि अपने लक्ष्य पर फोकस करना चाहिये।
                                                                                                                            सौरभ दुबे
                                

2 comments:

pravin dubey said...

bahut accha ,sarhniy pryash,pls attention the grammar and exampals those reaily touch the public and give details information about ur blogs and also define the moto of blogs last me dero subhkamnao ke saat me-
"imposible we do in a minute,it,s only miracle that takes a little longer-----------
Pravin kumar dubey (Bhadohi)

shashi said...

srahniy pryas bas aise hi likhte raho,
all the best